नवरात्र के तीसरे दिन मां चंद्रघंटा सहित देवी कूष्मांडा की पूजा विधि मंत्र और भोग
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9 अक्टूबर आज आश्विन शुक्ल तृतीया तिथि को देश भर में माता दुर्गा के चंद्रघंटा स्वरूप की पूजा हो रही है। आज ही तृतीया के साथ चतुर्थी तिथि भी लग जाने के कारण और चतुर्थी तिथि के क्षय हो जाने की वजह से देवी के चौथे स्वरूप की पूजा एक साथ हो रही है। ऐसे में नवरात्र का तीसरा दिन यानी तीसरा नवरात्र इस साल विशेष हो गया है। आज के दिन देवी की आराधना से आप एक साथ मां दुर्गा के दो स्वरूपों का आशीर्वाद एक साथ पा सकते हैं। आइए जानते हैं माता का तीसरा स्वरूप कैसा है और इन्हें प्रसन्न करने का मंत्र और इनका प्रिय भोग क्या है। साथ ही जानते हैं देवी कूष्मांडा को आप किस तरह से प्रसन्न कर सकते हैं। इनकी पूजा विधि मंत्र और इनका प्रिय भोग क्या है।
देवी चंद्रघंटा का स्वरूप और पूजा विधान
देवी भागवत पुराण में बताया गया है कि माता चंद्रघंटा का स्वरूप अत्यंत सौम्य और तपे हुए सोने के समान कांतिमय है। माता अपने मस्तक पर मुकुट धारण करती हैं जिनमें अर्धचंद्र विराजमान है। इसी चंद्रमा के साथ एक दिव्य घंटी लटक रही है जिनसे अलौकिक ध्वनि निकलती है जिसे सुनकर असुर, दुष्ट और नकारात्मक शक्तियां भयभीत हो जाती हैं। अर्ध चंद्र का मुकुट जिसमें घंटी लटकती रहती है घारण करने की वजह से माता अपने तीसरे रूप में चंद्रघंटा कहलाती हैं।
पुराण में बताया गया है कि माता चंद्रघंटा का दस भुजाएं हैं और यह शेर पर सवारी करती हैं जिससे इन्हें ही शेरोंवाली माता कहा जाता है। माता चंद्रघंटा अपनी दस भुजाओं में क्रमशः कमल, धनुष, बाण, कमंडल, तलवार, त्रिशूल और गदा घारण करके शत्रुओं के मन में भय उत्पन्न कर देती हैं।
माता चंद्रघंटा के गले में सफेद फूलों की सुगंधित माला है और यह अपने साधक और उपासकों को दीर्घायु, आरोग्य और सुख संपत्ति का आशीर्वाद देती हैं। इनकी साधना करने वाला भक्त बुद्धिमान और संसार में आदर पाने वाला बन जाता है।
मता चंद्रघंटा का ध्यान पूजन मंत्र
पिण्डजप्रवरारूढ़ा ण्डकोपास्त्रकेर्युता। प्रसादं तनुते मह्यं चंद्रघण्टेति विश्रुता॥ हाथों में पीले और लाल फूल लेकर दोनों हाथों को जोड़ लीजिए और माता का ध्यान इस मंत्र से कीजिए। इसके बाद या देवी सर्वभूतेषु मां चंद्रघंटा रूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै, नमस्तस्यै, नमस्तस्यै, नमो नम:।। इस मंत्र को बोलते हुए माता को जल, फूल, अक्षत, सिंदूर, कुमकुम अर्पित करना चाहिए। माता को मौसरी फलों के साथ शहद मिला पान भी भेंट करें।
देवी कूष्मांडा का घ्यान पूजन मंत्र
सुरासम्पूर्णकलशं रूधिराप्लुतमेव च। दधाना हस्तपद्माभ्यां कूष्मांडा शुभदास्तु मे। इस मंत्र से देवी कूष्मांडा का ध्यान करें। और फूल अर्पित करें। या देवी सर्वभूतेषु कूष्मांडा रूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।। इस मंत्र से माता को लाल फूल और अक्षत, चंदन एवं पेठे का प्रसाद अर्पित करें।
देवी भागवत पुराण में बताया गया है कि माता कूष्मांडा का निवास सूर्यमंडल के बीच में है। माता अपने भक्तों में तेज और बल का संचार करती हैं। माता कूष्मांडा के भक्तों की कभी पराजय नहीं होता यह जीवन में सदैव जय पाते हैं।